हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के सभी अवतारों की बड़ी ही श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है और प्रत्येक अवतार की आराधना करके मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। जिस प्रकार प्रभु श्री राम और कृष्ण, भगवान विष्णु का अवतार हैं वैसे ही नरसिंह अवतार को भी श्रद्धा से पूजा जाता है। भगवान नरसिंह का अवतरण वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुआ था। इसलिए इसी तिथि को नरसिंह जयंती के नाम से जाना जाता है।
नरसिंह के रूप में भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया था। तभी से इस तिथि का महत्व और ज्यादा बढ़ गया है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग भगवान के इस रूप की पूजा श्रद्धा भाव से करते हैं उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आइए ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें इस साल कब मनाई जाएगी नरसिंह जयंती और किस प्रकार पूजन करना फलदायी होगा।
Bhagwan Narasimha Puja Mantra भगवान नृसिंह के मंत्र:-Kanha ji Poshak Bhandar
एकाक्षर नृसिंह मंत्र- क्ष्रौं
त्र्यक्षरी नृसिंह मंत्र – ॐ क्ष्रौं ॐ
षडक्षर नृसिंह मंत्र- आं ह्रीं क्ष्रौं क्रौं हुं फट्
अष्टाक्षर नृसिंह- जय-जय श्रीनृसिंह
आठ अक्षरी लक्ष्मी नृसिंह मन्त्र- ॐ श्री लक्ष्मी-नृसिंहाय
दस अक्षरी नृसिंह मन्त्र- ॐ क्ष्रौं महा-नृसिंहाय नम:
तेरह अक्षरी नृसिंह मन्त्र- ॐ क्ष्रौं नमो भगवते नरसिंहाय
नृसिंह गायत्री- ॐ उग्र नृसिंहाय विद्महे, वज्र-नखाय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।
नृसिंह गायत्री– ॐ वज्र-नखाय विद्महे, तीक्ष्ण-द्रंष्टाय धीमहि। तन्नो नारसिंह: प्रचोदयात्।।
नरसिंह जयंती व्रत करने के नियम और दिशा-निर्देश एकादशी व्रत के समान ही हैं । नरसिंह जयंती से एक दिन पहले भक्त केवल एक बार भोजन करते हैं। नरसिंह जयंती के व्रत में सभी प्रकार के अनाज और अनाज का सेवन वर्जित होता है। अगले दिन उचित समय पर किया जाता है।
नरसिंह जयंती के दिन भक्त मध्याह्न (हिंदू दोपहर की अवधि) के दौरान संकल्प लेते हैं और सूर्यास्त से पहले सान्याकाल के दौरान भगवान नरसिंह पूजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान नरसिंह सूर्यास्त के समय प्रकट हुए थे जबकि चतुर्दशी प्रचलित थी। रात्रि जागरण करने और अगले दिन सुबह विसर्जन पूजा करने की सलाह दी जाती है। अगले दिन विसर्जन पूजा करके और ब्राह्मण को दान देकर व्रत तोड़ा जाना चाहिए।
नरसिंह जयंती का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद तब तोड़ा जाता है जब चतुर्दशी तिथि समाप्त हो जाती है। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाती है तो सूर्योदय के बाद जयंती अनुष्ठान समाप्त करने के बाद किसी भी समय व्रत तोड़ा जा सकता है। यदि चतुर्दशी बहुत देर से समाप्त होती है अर्थात चतुर्दशी दिनमान के तीन चौथाई से आगे रहती है तो दिनमान के पूर्वार्द्ध में व्रत तोड़ा जा सकता है। दिनमान सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच का समय है।
द्रिकपंचांग.कॉम संकल्प लेने के लिए मध्याह्न समय, पूजा करने के लिए संयकाल अवधि और उपवास तोड़ने के लिए अगले दिन पारण का समय सूचीबद्ध करता है। ये सभी समय स्थान आधारित हैं इसलिए पूजा और पारण के समय को नोट करने से पहले स्थान बदलना अनिवार्य है।
नृसिंह भगवान आरती (Narasimha Bhagwan Aarti)
ॐ जय नरसिंह हरे,
प्रभु जय नरसिंह हरे ।
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे,
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे,
जनका ताप हरे ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥
तुम हो दिन दयाला,
भक्तन हितकारी,
प्रभु भक्तन हितकारी ।
अद्भुत रूप बनाकर,
अद्भुत रूप बनाकर,
प्रकटे भय हारी ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥
सबके ह्रदय विदारण,
दुस्यु जियो मारी,
प्रभु दुस्यु जियो मारी ।
दास जान आपनायो,
दास जान आपनायो,
जनपर कृपा करी ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥
ब्रह्मा करत आरती,
माला पहिनावे,
प्रभु माला पहिनावे ।
शिवजी जय जय कहकर,
पुष्पन बरसावे ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥0
भगवान श्री विष्णु नरसिंह अवतार पौराणिक कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप को ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि वह न तो किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सके न ही किसी पशु द्वारा। न दिन में मारा जा सके, न रात में, न जमींन पर मारा जा सके, न आसमान में। इस वरदान के नशे में आकर उसके अंदर अहंकार आ गया। जिसके बाद उसने इंद्र देव का राज्य छीन लिया और तीनों लोक में रहने वाले लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उसने घोषणा कर दी कि मैं ही इस पूरे संसार का भगवान हूं और सभी मेरी पूजा करो।
उधर, हिरण्कश्यप के स्वभाव से विपरीत उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। पिता के लाख मना करने और प्रताड़ित करने के बाद भी वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। जब प्रहला ने अपने पिता हिरण्यकश्यप की बात नहीं मानी तो उसने अपने ही बेटे को पहाड़ से धकेल कर मारने की कोशिश कि, लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद की जान बचा ली। इसके बाद हिरण्कश्यप ने प्रहलाद को जिंदा जलाने की नाकाम कोशिश की।
अंत में क्रोधित हिरण्कश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को दीवार में बांध कर आग लगा दी और बोला बता तेरा भगवान कहां है, प्रहलाद ने बताया कि भगवान यहीं हैं, जहां आपने मुझे बांध रखा है। जैसे ही हिरण्कश्यप अपने गदे से प्रह्लाद को मारना चाहा, वैसे ही भगवान विष्णु नरसिंह का अवतार लेकर खंभे से बाहर निकल आए और हिरण्कश्यप का वध कर दिया। जिस दिन भगवान नृसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध करके भक्त प्रहलाद के जीवन की रक्षा की, उस दिन को नरसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।